एक छुपी हुई पहचान रखता हूँ,
बाहर शांत हूँ, अंदर तूफान रखता हूँ,
रख के तराजू में अपने दोस्त की खुशियाँ,
दूसरे पलड़े में मैं अपनी जान रखता हूँ।
मुझे ना डालो हिंदू मुस्लिम के झगड़ों में,
बुत पूजता हूँ, मुसल्लम ईमान रखता हूँ।
बंदों से क्या, रब से भी कुछ नहीं माँगा
मैं मुफलिसी में भी नवाबी शान रखता हूँ।
मुर्दों की बस्ती में ज़मीर को ज़िंदा रख कर,
ए जिंदगी मैं तेरे उसूलों का मान रखता हूँ।
भाषा, कौम, प्रान्तों में बटे इस मुल्क में,
मैं फकत इक इंसान की पहचान रखता हूँ।
नफरत काट ना पाएगी मेरे हाथों को,
मैं इक में गीता तो इक में कुरान रखता हूँ।